बस्तर दशहरा (Bastar Dashhara)बहुत ही लोकप्रिय और शानदार पर्व है। हमारे देश में विजयदशमी के दिन रावण किया जाता है,यह बुराई पर अच्छाई की जीत का पर्व है लेकिन बस्तर का दशहरा इन सबसे अलग है। बस्तर में नवरात्री और दशहरा को अलग तरीके से मनाया जाता है। बस्तर दशहरा अपने अनोखी और सबसे अलग प्रकार से मनाए जाने के पूरे दुनिया में प्रसिद्ध है। यह दुनिया में सबसे लंबे दिनों तक चलने वाला पर्व है, जहां दशहरे में रावण दहन नहीं होता है। इसका आयोजन लगभग 75 दिनों तक चलता रहता है। बस्तर दशहरा का आरंभ पाट जात्रा के पर्व से शुरू होता है।
पाट जात्रा
पाट जात्रा का मतलब है, इस दिन हरियाली अमावस्या यानि सावन महीने की अमावस्या के दिन बिलोरी ग्राम के निवासी माचकोट के जंगलों में जाकर कुछ साल वृक्ष की कटाई करते हैं। साल वृक्ष का पहला लट्ठा टूरलु खोटला यानि प्रथम लकड़ी इस लकड़ी के पूजा अर्चना के बाद इसे कंधे पर उठाकर गाँव लाया जाता है उसके बाद इसे जगदलपुर शहर तक लाया जाता है। साल वृक्ष के इन लट्ठों से रथों का निर्माण किया जाता है। ऐसे दो रथों का निर्माण किया जाता है, एक चार पहियों वाला और एक आठ पहियों वाला यही दोनों रथ बस्तर की विशेष पहचान है। पाट जात्रा का मतलब यह माना जाता है वह यात्रा जिसमें साल के लट्ठों को जगदलपुर शहर तक लाया जाता है और इसे माँ दंतेश्वरी मंदिर के सामने जमा किया जाता है। साल वृक्ष के लट्ठों के साथ-साथ उनकी टहनियों को भी शामिल किया जाता है। इसके बाद यहाँ से शुरू होती है डेरी गड़ाई का उत्सव शुरू होता है।
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डेरी गड़ाई
डेरी गड़ाई का मतलब डार यानि टहनियाँ इन टहनियों से झोपड़ियाँ बनाई जाती हैं और इन झोपड़ियों का निर्माण करके रथ का निर्माण करने वाले लोग यहाँ रहते हैं। रथ निर्माण कर्ता जो की सौरा जनजाति के लोग होते हैं। अभी वर्तमान में सौरा जाति के लोगों की संख्या कम होने की वजह से यहाँ दूसरे जनजाति के लोग स्वयं को सौरा जाति में शामिल करके झोपड़ियों में रहते हैं। इन्हे सीमित समय यानि बस्तर दशहरा तक के लिए ही सौरा जनजाति में शामिल किया जाता है।
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काछीन गादी
डेरी गड़ाई के बाद काछीन गादी का उत्सव मनाया जाता है। इसमें काछीन गादी देवी की पूजा की जाती है। काछीन गादी देवी मृदान जाति की देवी मानी जाती है, यह देवी युद्ध और शौर्य की देवी मानी जाती हैं। इस दिन काछीन देवी का आगमन होता है। काछीन देवी मृदान जाति की एक कन्या के ऊपर आती हैं और इन्हे काँटों के झूले में बिठाकर झुलाया जाता है। काछीन गादी देवी बस्तर दशहरा को प्रारम्भ करने के लिए आशीर्वाद देती है। इसी के साथ बस्तर दशहरे पर्व की शुरुआत होती है।
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जोगी बिठाई
जोगी बिठाई में हल्बा जाति के एक युवक को जोगी का पद दिया जाता है और यह जोगी सिरहा सार में जाता है। माँ दंतेश्वरी के पुजारी जिन्हे सिरहा कहा जाता है, इनका घर मंदिर के पास ही होता है। इस सिरहा सार में एक गड्ढा खोदा जाता है और इस गड्ढे में जोगी बैठता है। यह जोगी बिना खाये-पिये तपस्या करता है। दंतेश्वरी माता को प्रसन्न करके बस्तर दशहरा पर्व सफल रूप से सम्पन्न हो इसलिए यह जोगी तपस्या करता है। जोगी को यहाँ बैठकर तपस्या करने की परंपरा को कहते हैं जोगी बिठाई।
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रथ परिक्रमा
जोगी बिठाई के बाद नवरात्रि का कार्यक्रम शुरू होता है जिसमें रथ परिक्रमा की जाती है। इसमें चार पहियों वाले रथ को पूरे श्हर में घुमाया जाता है और यह रथ परिक्रमा का कार्यक्रम पूरी नवरात्रि भर चलता है। नवरात्रि के आंठवे दिन निशा जात्रा का आयोजन होता है।
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निशा जात्रा
निशा जात्रा को बलि का उत्सव माना जाता है। इसमें मावली माता और भैरव देव इन दोनों देवी-देवताओं को बलि चढ़ाई जाती है। बलि में बकरे, मछ्ली व अन्य जीवों की बलि दी जाती है इस बलि के बाद इसे प्रसाद के रूप में जन-जतियों में बांटा जाता है। इसे मावली माता और भैरव बाबा का आशीर्वाद माना जाता है। निशा जात्रा के बाद नवमी के दिन जोगी उठाई और मावली परधाव का कार्यक्रम होता है।
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जोगी उठाई/मावली परधाव
जोगी उठाई कार्यक्रम नवमी के दिन जोगी को बहुत ही सम्मान के साथ उनके स्थान से उठाया जाता है और इनकी पुजा की जाती है। मावली परधाव में मावली माता जो दंतेश्वरी माता का ही एक रूप है इन्हे बस्तर के राजा के द्वारा अपने घर आगमन के लिए इनकी पुजा की जाती है। मावली माता को घर में स्वागत करने के उत्सव को मावली परधाव कहा जाता है। छत्तीसगढ़ में परधाव का मतलब होता है स्वागत करना।
विजयादशमी/भीतर रैनी
हमारे पूरे देश में नवरात्रि के बाद विजयादशमी के दिन रावण दहन का कार्यक्रम होता है जबकि बस्तर में आंठ पहियों वाला रथ तैयार किया जाता है, इस रथ में दंतेवाड़ा से लाया गया छत स्थापित किया जाता है। इस छत को माँ दंतेश्वरी के स्थापित होने का प्रतीक माना जाता है। इस छत्र और माता के साथ आंठ पहियों वाले रथ की झांकी निकली जाती है। इस झांकी निकालने की प्रक्रिया को भीतर रैली कहा जाता है और यह आंठ पहियों वाला रथ पूरे शहर का चक्कर लगाता है। यही वो पर्व है जिसमें हजारों-लाखों लोग पूरे देश से बस्तर दशहरा का आनंद लेने आते हैं। यहाँ राज्य के सैनिकों द्वारा माँ दंतेश्वरी और उनकी छत्र को सलामी दी जाती है इसे बहुत ही विशेष सम्मान माना जाता है।
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बाहर रैनी
एकादशी के दिन बाहर रैनी का कार्यक्रम शुरू हो जाता है। दशमी की रात और एकादशी के सुबह होने से पहले कुंभड़ाकोट गाँव के लोग इस रथ को छत्र सहित माता के रथ को चुरा लेते हैं और कुंभड़ाकोट गाँव ले जाते हैं। कुंभड़ाकोट गाँव का मुखिया रथ का सम्मान करते हैं और अपने यहाँ की उपज यानि पहला अन्न माता को समर्पित करते हैं। माता का इस प्रकार बाहर जाकर शयन करना ही बाहर रैनी कहलाता है। एकादशी के सुबह के दिन राज परिवार इस गाँव में आकर ग्रामवासियों को मनाकर रथ को वापस जगदलपुर लाया जाता है। माता के रथ को वापस लाते समय भतरा जाति के नवयुवक धनुर्धारी के रूप माता के रथ की रक्षा करते हैं और इसे शहर में वापस लाते हैं।
मुरिया दरबार/ काछिन जात्रा
द्वादशी के दिन मुरिया दरबार और काछिन जात्रा का आयोजन किया जाता है। काछिन जात्रा के दिन काछिन माता को धन्यवाद करते हैं, माता के आज्ञा से ही नवरात्रि और दशहरा का पर्व आरंभ हुआ था। इसी दिन मुरिया दरबार का आयोजन भी किया जाता है, इस आयोजन में मुरिया जनजाति व समस्त जनजाति के मुखिया राजदरबार में एकत्रित होते हैं और बस्तर का राजा इन लोगों की समस्याओं को सुनते हैं। आज के समय में यहाँ राज्य के बड़े अधिकारी भी शामिल होते हैं,आदिवासियों की समस्याओं को सुनते हैं और समस्याओं को दूर करने का प्रयास करते हैं। छत्तीसगढ़ सरकार लोक-सुराज अभियान का आयोजन करती है और लोगों की समस्याओं को दूर करती है वैसे ही यह मुरिया दरबार शासक और जनता को नजदीक लाता है और जनता की समस्याओं के निराकरन का पर्व मनाती है।
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ओहाड़ी
ओहाड़ी पर्व के दिन गंगा मुंडा तालाब में राज परिवार के सभी लोग एकत्रित होते हैं और देवी माता को धन्यवाद कहते हैं। इस तरह 75 दिनों तक चलने वाला पर्व दुनिया का सबसे लंबे दिनों तक चलाने वाला पर्व है।