यहाँ अनेक दर्शनीय स्थल एवं पर्यटन स्थल हैं। जिसमें पुरातात्विक व धार्मिक, प्राचीन गुफाएँ और सुंदर प्राकृतिक जलप्रपात आते हैं।
आस्था की पीठ दंतेवाड़ा
बस्तर संभाग के समस्त लोक-जीवन की लोकदेवी माँ दंतेश्वरी का मंदिर दंतेवाड़ा में स्थित है। पूर्व का ग्राम तारलापाल जो शंकनी-डंकनी नदी के संगम पर स्थित था जो कि वर्तमान में दंतेवाड़ा के नाम से जाना जाता है। माई दंतेश्वरी को माँ दुर्गा का ही प्रतिरूप माना जाता है,माना जाता है कि माँ दुर्गा के जो 52 शक्तिपीठ सम्पूर्ण देश में प्रतिस्थापित है उनमें दंतेवाड़ा कि माई दंतेश्वरी मंदिर का प्रमुख स्थान है।
माई दंतेश्वरी मंदिर में आशीर्वाद लेने हेतु न सिर्फ बस्तर परिक्षेत्र या छत्तीसगढ़ से बल्कि देश के कोने-कोने से लोगों का यहाँ आना लगा रहता है। दंतेवाड़ा में भैरव बाबा का एक प्रमुख मंदिर शंखिनी नदी के दूसरे तट पर स्थित है। संगम स्थल पर एक विशाल पत्थर में एक पदचिन्ह को भैरव बाबा का पदचिन्ह माना जाता है। आदिवासी समाज के प्रमुख देव भीमा देव जो अकाल और बाड़ से बचाने वाले देव माने जाते हैं,उनकी प्रतिमा भी यहाँ स्थित है।
दंतेवाड़ा आने वाले तीर्थ यात्री शंखिनी-डंकिनी नदी के संगम में स्नान करते हैं एवं यहाँ का जल लेकर जाते हैं, ऐसा माना जाता है कि प्रेत बाधा से संतप्त लोंगों पर शंखिनी-डंकिनी नदी का पानी छिड़कने पर प्रेत[- चुड़ैल,टोना-टोटका,नजर या काले जादू का असर नहीं होता।
प्राचीन वैभव का प्रतीक बारसूर नगरी
बस्तर संभाग के अंतर्गत आने वाला बारसूर नगरी अपने प्राचीन वास्तुकला, पुरातात्विक, धार्मिक, सांस्कृतिक और प्राकृतिक सौंदर्यता के कारण पूरे छत्तीसगढ़ राज्य में प्रसिद्ध है। बारसूर राष्ट्रीय राजमार्ग 63 में गीदम(दंतेवाड़ा) से उत्तर दिशा की ओर 20 किमीटर दूर स्थित है।
बारसुर में प्रवेश के साथ ही बत्तीसा मंदिर के दर्शन होते है। पुरातात्विक स्रोंतो के आधार पर इस मंदिर का निर्माण सन् 1030 ई. में नागवंशीय नरेश की पटरानी ने करवाया था। बत्तीस पाषाण स्तम्भ (पत्थरों से बनाया गया स्तम्भ) पर आधारित होने के कारण इसे बत्तीसा मंदिर के नाम से जाना जाता है। यह मंदिर पुरातत्व की स्मृतियों को संजोय हुए है। छत्तीसगढ़ शासन के पुरातत्व विभाग द्वारा बत्तीसा मंदिर को संरक्षित स्थान घोषित किया गया है।
बत्तीसा मंदिर के समीप विशालकाय चतुर्भुजीय गणेश जी की मूर्ति है। बारसुर के मध्य में मामा-भांचा मंदिर अपनी उत्कृष्ट वास्तुकला के कारण प्रसिद्ध है। दंतकथाओं के आधार पर माना जाता है कि इस मंदिर का निर्माण गंगवाशीय नरेश के भांजे ने उत्कल राज्य के ख्यातिलब्ध कारीगरों कि शिल्पकला का सहयोग लेकर करवाया था, किन्तु मंदिर कि भव्यता या उससे संबन्धित किसी कारण से भांजे ने अपने मामा का सिर काटकर इस मंदिर को अर्पित कर दिया तब से 11वी शताब्दी का यह प्रसिद्ध मंदिर मामा-भांजा मंदिर के नाम से जाना जाता है। बारसुर के अन्य प्रसिद्ध मंदिरों में देवरली मंदिर एवं चंद्रादित्य मंदिर भी आते हैं। बारसुर को अबूझमाड़ क्षेत्र का दक्षिण प्रवेश द्वार माना जाता है।
समलूर का पुरातात्विक वैभव
दंतेवाड़ा से बीजापुर जाने वाले क्षेत्र में सघन वनों से घिरा हुआ समलूर ग्राम पुरातात्विक वैभव का प्रतीक है। समलूर ग्राम छिंदक नागवंशीय राजाओं ने 11 वीं शताब्दी में प्रसिद्ध शिव मंदिर का निर्माण बेसर शैली में करवाया था। बलुआ पत्थर से निर्मित यह मंदिर आयताकार ईंटनुमा पत्थरों को जोड़कर बनाया गया है। मंदिर अपने विशाल शिवलिंग आकार के कारण विशेष रूप से प्रसिद्ध है। बताया जाता है कि शिवलिंग कि ऊंचाई लगभग सवा 2 फीट तथा व्यास लगभग 3 फीट है।
जगदलपुर
प्रसिद्ध काकतीय वंशीय राजमहल और उसमें स्थित बस्तर की आराध्य देवी माई दंतेश्वरी का ऐतिहासिक मंदिर बस्तर संभाग के जगदलपुर में स्थित है। जगदलपुर नगर के मध्य में स्थित ‘दलपत सागर’ सम्पूर्ण संभाग का सबसे बड़ा ऐतिहासिक तालाब है। यहाँ का ‘बस्तर दशहरा और गोंचा पर्व’ अपनी विशेष प्राचीन आदिवासी परंपरा का निर्वहन करता है जो विश्व स्तरीय आदिम उत्सव में स्थान रखता है।
कांगेर घाटी राष्ट्रीय उद्यान बस्तर संभाग के जगदलपुर के अंतर्गत आता है। कांगेर घाटी राष्ट्रीय उद्यान सन् 1985 में एशिया का प्रथम ‘बायोस्फियर रिजर्व’ घोषित किया गया था। कांगेर घाटी राष्ट्रीय उद्यान की प्रमुख विशेषता यहाँ गानेवाली पहाड़ी मैना का पाया जाना है। उसके अतिरिक्त यहाँ वन्य पशुओं की भी समृद्ध संख्या है। यहाँ भैंसादरहा मगर संरक्षण क्षेत्र कांगेर नदी एवं खोलबा नदी के संगम पर स्थित है यहाँ बड़ी संख्या में मगरमच्छ पाये जाते है। छतीसगढ़ का सबसे बड़ा जलप्रपात तीरथगढ़ और देश का नियग्रा कहे जाने वाला चित्रकोट जलप्रपात इसी राष्ट्रीय उद्यान में स्थित है। विश्व प्रसिद्ध कोटमसर की प्राकृतिक गुफा, मकर गुफा, दंडक गुफा, कनक गुफा यहाँ स्थित है।
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कांकेर
बस्तर संभाग के अंतर्गत आने वाला कांकेर जिला दूध नदी के किनारे बसा हुआ है। कांकेर के दक्षिण में गड़िया पहाड़ इसी पहाड़ के नीचे कांकेर जिला बसा हुआ है। पहाड़ के ऊपर पत्थरों से निर्मित ”सिंहद्वार” व ”किला” इस नगरी के प्राचीन वैभव की झलक प्रस्तुत करते हैं। गड़िया पहाड़ के ऊपर एक बारहमासी सरोवर ‘सोनई-रुपई’ स्थित है।
यहाँ दर्शनीयस्थल में सोमवंशीय राज परिवार का राजमहल, सिंह वाहिनी मंदिर, दक्षिणामुखी हनुमान मंदिर, राम मंदिर एवं द्वारिकाधीश जी का मंदिर तथा कंकालीन माता व शीतला माता का मंदिर है। यहाँ अनेक मनोहारी पर्यटन स्थल भी हैं जिसमे मलाजकुड़ुम, चर्रे-मर्रे जलप्रपात,दुधवा जलाशय एवं कानागांव में धारापुरम आदि हैं।
नारायणपाल का विष्णु मंदिर,चिंगीतरई शिव मंदिर
नारायणपाल का विष्णु मंदिर नारायणपाल ग्राम में स्थित है जो इंद्रावती और नारंगी नदी के संगम के आसपास बसा हुआ है। पुरातात्विक दृष्टिकोण से यह बस्तर का एकमात्र विष्णु मंदिर है। इसका निर्माण छिंदक नागवंशीयों के करवाया था। चालुक्य शैली से निर्मित यह मंदिर पाषाण खंडों से निर्मित है। नारायणपाल का विष्णु मंदिर पुरातत्व एवं मनोहारी वास्तुकला का समृद्ध उदाहरण है। चिंगीतरई शिव मंदिर दरभा विकासखण्ड में बेसरशैली से निर्मित वास्तुकला का अनुपम उदाहरण है।
भोंगापाल
भोंगापाल कोण्डागाँव जिले के अंतर्गत आता है सघन वनों से घिरा हुआ ग्राम भोंगपाल में स्थित डोकरा बाबा टीले में 5वीं -6वीं शताब्दी का विशाल बौद्ध चैत्य मंदिर है,साथ ही यहाँ सप्तमातृका मंदिर और शिव मंदिर भी है। बौद्ध चैत्य मंदिर का निर्माण ऊंचे चबूतरे पर किया गया है। यहाँ विशाल बौद्ध जी की प्रतिमा है, ईटों से निर्मित यह मंदिर राज्य की एक पुरातात्विक विरासत है।
बड़ेडोंगर
बड़ेडोंगर कोंडगांव जिले अंतर्गत आता है। बड़ेडोंगर बस्तर की आदिम सभ्यता व संस्कृति के गौरव-गाथा का जीवंत उदाहरण है। पर्वतों की शृंखला से घिरा हुआ यह गाँव बहुत ही सुन्दर दृश्य प्रदान करता है। यहाँ एक पहाड़ी पर अवस्थित बस्तर की लोकदेवी माई दंतेश्वरी का प्राचीन मंदिर है। इसी मंदिर के समीप पहाड़ी पर एक प्रसिद्ध एतिहासिक ‘टुनटूनी पत्थर’ भी है,जिससे विभिन्न प्रकार की ध्वनि निकलती है। यहाँ बहुत पुराना तालाब है,जिसे बूढ़ासागर तालाब कहते है। यह तालाब पहाड़ों की शृंखला के नीचे है,जिसकी वजह से यह बहुत ही सुन्दर दृश्य प्रदान करता है।
बड़ेडोंगर से 8 किलोमीटर दूर आलोर ग्राम है जहां लिंगेश्वरी देवी का मंदिर है। यह मंदिर साल में एक बार ही खोला जाता है,जिसके कारण यहाँ भक्तों की लंबी कतार दिखाई देती है। लिंगेश्वरी देवी का मंदिर पहाड़ों की बीच स्थित है।
फूलों की घाटी : केशकाल
कोण्डागाँव जिले में स्थित केशकाल बस्तर के नैसर्गिक सौंदर्यता का प्रथम द्वार माना जाता है। केशकाल घाटी अपनी सर्पाकार फूलों की घाटी के लिए प्रसिद्ध है यहाँ 12 गहरे घुमाओंदार मोड़ हैं। पूर्व में केशकाल घाटी को मेकड़ा घाटी कहा जाता था। केशकाल घाटी के मध्य तेलिन माता का मंदिर है, घाटी से गुजरने वाले यात्री यहाँ रुककर माता के दर्शन करते हैं।